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अरं॑ मे गन्तं॒ हव॑नाया॒स्मै गृ॑णा॒ना यथा॒ पिबा॑थो॒ अन्धः॑। परि॑ ह॒ त्यद्व॒र्तिर्या॑थो रि॒षो न यत्परो॒ नान्त॑रस्तुतु॒र्यात् ॥२॥

English Transliteration

aram me gantaṁ havanāyāsmai gṛṇānā yathā pibātho andhaḥ | pari ha tyad vartir yātho riṣo na yat paro nāntaras tuturyāt ||

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Pad Path

अर॑म्। मे॒। गन्त॑म्। हव॑नाय। अ॒स्मै। गृ॒णा॒ना। यथा॑। पिबा॑थः। अन्धः॑। परि॑। ह॒। त्यत्। व॒र्तिः। या॒थः॒। रि॒षः। न। यत्। परः॑। न। अन्त॑रः। तु॒तु॒र्यात् ॥२॥

Rigveda » Mandal:6» Sukta:63» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:6» Anuvak:6» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे सभासेनाधीशो ! तुम (त्यत्) उस (वर्त्तिः) मार्ग को (परि, याथः) सब ओर से जाते हो (यत्, ह) जिसमें (परः) शत्रुजन (अन्तरः) भिन्न (रिषः) हिंसकों के (न) समान किसी को (न) न (तुतुर्यात्) मारे (यथा) जैसे (मे) मेरे (अस्मै) इस (हवनाय) ग्रहण के लिये (अरम्) पूर्णतया (गन्तम्) जाओ, वैसे (गृणाना) स्तुति करनेवाले होते हुए (अन्धः) रस को (पिबाथः) पिओ ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। राजजनों से वैसा प्रबन्ध किया जाये, जैसे मार्गों में कोई भी चोर और शत्रु किसी को पीड़ा न दे ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ किं कुर्य्यातामित्याह ॥

Anvay:

हे सभासेनेशौ ! युवां त्यद्वर्त्तिः परि याथो यद्यत्र ह परोऽन्तरो रिषो न कंचिन्न तुतुर्याद्यथा मेऽस्मै हवनायाऽरं गन्तं तथा गृणाना सन्तावन्धः पिबाथः ॥२॥

Word-Meaning: - (अरम्) अलम् (मे) मम (गन्तम्) गच्छतम् (हवनाय) आदानाय (अस्मै) (गृणाना) स्तुवन्तौ (यथा) (पिबाथः) पिबतम् (अन्धः) रसम् (परि) (ह) प्रसिद्धम् (त्यत्) तम् (वर्तिः) मार्गम् (याथः) (रिषः) हिंसकाः (न) इव (यत्) यत्र (परः) शत्रुः (न) निषेधे (अन्तरः) भिन्नः (तुतुर्यात्) हिंस्यात् ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। राजजनैस्तथा प्रबन्धः क्रियेत यथा मार्गेषु कश्चिदपि चोरः शत्रुश्च कञ्चिदपि न पीडयेत् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. राजजनांनी अशी व्यवस्था केली पाहिजे की, वाटेत जाताना चोर व शत्रूंचा त्रास होऊ नये. ॥ २ ॥